एक नीरस कविता यह और यही तो सबके साथ होता है। एक वक़्त आता है जब अचानक एक दिन आप पाते हैं कि आपका जमाना बीत गया है। आप एक कोने में पड़े हुए अपने आसपास को देखते रहते हैं और आपका आसपास बिना आपकी भागेदारी के चलता रहता है, बढ़ता रहता है।
इन सब अहसासों और अनुभवों के बीच वे ऐसा भी सोचते रहते हैं, कि बुढ़ापे में यह सिर्फ उनके साथ ही नहीं हो रहा है। पहली बार नहीं हो रहा है. सदियों से इस संसार में बुढ़ापा विवश, विकराल और विषादमय ही रहता आया है। यह सब बड़ी हुई उमर का तकाजा है। थकी हुई देह कि नैसर्गिक नियति।
उत्खनन
वक़्त कितनी बेरहमी के साथ बीत जाता है।
अपने ऐसे दिनों को कौन नहीं याद रखता...बाद में तो जीने की हड़बड़ी और घबराहटों से ही फुरसत नहीं मिलती है।
व्यथा
अब महसूस होता है कि उन दिनों मेरे जीवन में कितना कुछ आत्मीय घटता था। जिसे हम सुख कह कर बुला सकते हैं, वह कितनी सरलता और चंचलता के साथ गायब हो जाता है।
सोफिया
उम्र के साथ-साथ आदमी कितनी चीजों को छोड़ता चला जाता है. उससे कितने लोग छूटते हैं, कितनी जगहें, कितने सपने और कितनी आकांक्षाएँ। फिर एक दिन आता है जब आदमी खुद को ही छोड़ देता है।
आहिस्ता-आहिस्ता सब बदलता जाता है। हर आदमी धीरे-धीरे मरता रहता है।
शाम
मैं भ्रमों, भटकावों और भूलों के बीच नहीं भटकूँगा।
(comment: कहानी में अनुप्रास अलंकार का भरपूर प्रयोग है।)
सर्दियों की इस शाम में, मैं इस भय और आशंका से भी ठिठुर रहा हूँ कि कहीं उसकी मुझमें दिलचस्पी तो बुझने नहीं लगी है।
रात
हमारी छोटी-सी जिंदगी में कितने लोग आते हैं। कैसे-कैसे लोग आते हैं। हमारा अपना जीवन जैसे किसी सराय की तरह होता है। जिसमें लोग कुछ दिनों तक ठहरते हैं और चले जाते हैं।
जिहाद
बहुत पहले दीदी ने कहा था - 'मै अकेलापन महसूस करती रही हूँ लेकिन बोरियत मुझे बहुत कम ही सताती है।'
सोफिया
उम्र के साथ-साथ आदमी कितनी चीजों को छोड़ता चला जाता है. उससे कितने लोग छूटते हैं, कितनी जगहें, कितने सपने और कितनी आकांक्षाएँ। फिर एक दिन आता है जब आदमी खुद को ही छोड़ देता है।
आहिस्ता-आहिस्ता सब बदलता जाता है। हर आदमी धीरे-धीरे मरता रहता है।
शाम
मैं भ्रमों, भटकावों और भूलों के बीच नहीं भटकूँगा।
(comment: कहानी में अनुप्रास अलंकार का भरपूर प्रयोग है।)
सर्दियों की इस शाम में, मैं इस भय और आशंका से भी ठिठुर रहा हूँ कि कहीं उसकी मुझमें दिलचस्पी तो बुझने नहीं लगी है।
रात
हमारी छोटी-सी जिंदगी में कितने लोग आते हैं। कैसे-कैसे लोग आते हैं। हमारा अपना जीवन जैसे किसी सराय की तरह होता है। जिसमें लोग कुछ दिनों तक ठहरते हैं और चले जाते हैं।
जिहाद
बहुत पहले दीदी ने कहा था - 'मै अकेलापन महसूस करती रही हूँ लेकिन बोरियत मुझे बहुत कम ही सताती है।'