Sunday, April 5, 2015

प्रतिनिधि कहानियाँ (क़ुर्रतुल ऐन हैदर)

आवारागर्द

…मैं मुहब्बत पर बहुत यक़ीन रखता हूँ। इसकी वजह शायद यह है कि अभी कमउम्र हूँ…


दुनिया में सिर्फ़ वही लोग ख़ुश रह सकते हैं जो ज़िंदगी को बग़ैर किसी पसोपेश के और बग़ैर सवालात किए मंज़ूर कर लें।


…मज़मून के आख़िर में दो सफ़हात पर फैली हुई एक तसवीर है, जिसमे धान के हरे खेत हैं और धान की बालियाँ हवा के झोकों से झुकी जा रही हैं और लंबे पत्तोंवाले दरख़्त हवा में लहरा रहे हैं। उफ़क़ [क्षितिज] पर दरख़्तों की कतारें हैं और सब्ज़ा और पानी। यह ऐसा दिलफ़रेब मंज़र है मुसव्विर [चित्रकार] जिसकी तस्वीरें बनाते हैं, शायर नज़्में कहते हैं और अफ़सानानिगार 'धरती की अज़मत' के मुताल्लिक़ कहानियाँ लिखते हैं। इन हरे-भरे दरख़्तों के पीछे किसानों के पुरअमन झोपड़ें होंगे और इस गाँव के बासी तिनकों से बनी हुई छज्जेदार नोकीली टोपियों ओढ़े दिन-भर पानी में खड़े रहकर धान रोपते होंगे और गीत गाते होंगे और फ़स्ल तैयार होने के बाद मंडी में जाकर मेहनत से उगाया हुआ यह धान थोड़े-से पैसों में फ़रोख़्त करके अपनी ज़िंदगियाँ गुज़ारते होंगे। इस नदी के किनारे लड़कियाँ अपने चाहनेवालों से मिला करती होंगी…

लेकिन इस तसवीर में जो इस वक़्त मेरे सामने रखी है, कटे-फटे चेहरोंवाली नीम उरियाँ [अधनंगी] और ख़ूनआलूद [ख़ून में लथपथ] नौजवान लाशें पड़ी हैं।