यह क्या हो जाता है कि अपना खुद का परिवार बस जाने के बाद, हम उस परिवार को, उस परिवार के लिए अपनी जिम्मेवारियों को भूलने लगते हैं, जहाँ से हम आए थे, जिसके सहारे हम बड़े हुए थे, जिनके बिना हम वहाँ आ ही नहीं सकते थे, जहाँ हम आए हुए हैं, खड़े हुए हैं।
"प्रेम आगे की तरफ भागता है।"
अम्मा कहा करती थी। एक उम्र में माँ-बाप से ज्यादा बच्चों की फिक्र बनी रहती है। यह प्रकृति का नियम है। हमारे जैसे मामूली लोग, इसी नियम के घेरे में बँधे रहते हैं।
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आदमी के जीवन में ही यह क्यों हो जाता है? हर अनुभव, हर इम्प्रेशन, रोजमर्रा जीवन का कतरा-कतरा हाथ से निकलता चला जाता है। जीवन से छूटता चला जाता है। कोई भी भावना, कोई भी विचार, देर और दूर तक साथ नहीं आता है। न अपना एकान्त रह पाता है और न ही अपना सच। अपनी पुरानी और सच्ची लालसा तो बिल्कुल भी नहीं रह पाती। लालसा अपना स्वभाव बदलती चलती है। स्वभाव अपनी लालसा बदलता जाता है।
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...कभी जिस चेहरे पर लालसा और लालित्य को देखा था, वहाँ अब हार और हताशा को देखना कठिन रहेगा। यही तो होता है। हम सबके साथ होता है। यह सब सदियों से होता चला आ रहा है। उम्र के साथ-साथ जीवन के उतार के दिनों में हम सबके भीतर ही हताशा और हार अपना-अपना घर बसाने लगती है।
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वे कितने भोलेभाले, कितने सीधे-साधे, कितने हल्के-फुल्के दिन हुआ करते थे...
"प्रेम आगे की तरफ भागता है।"
अम्मा कहा करती थी। एक उम्र में माँ-बाप से ज्यादा बच्चों की फिक्र बनी रहती है। यह प्रकृति का नियम है। हमारे जैसे मामूली लोग, इसी नियम के घेरे में बँधे रहते हैं।
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आदमी के जीवन में ही यह क्यों हो जाता है? हर अनुभव, हर इम्प्रेशन, रोजमर्रा जीवन का कतरा-कतरा हाथ से निकलता चला जाता है। जीवन से छूटता चला जाता है। कोई भी भावना, कोई भी विचार, देर और दूर तक साथ नहीं आता है। न अपना एकान्त रह पाता है और न ही अपना सच। अपनी पुरानी और सच्ची लालसा तो बिल्कुल भी नहीं रह पाती। लालसा अपना स्वभाव बदलती चलती है। स्वभाव अपनी लालसा बदलता जाता है।
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...कभी जिस चेहरे पर लालसा और लालित्य को देखा था, वहाँ अब हार और हताशा को देखना कठिन रहेगा। यही तो होता है। हम सबके साथ होता है। यह सब सदियों से होता चला आ रहा है। उम्र के साथ-साथ जीवन के उतार के दिनों में हम सबके भीतर ही हताशा और हार अपना-अपना घर बसाने लगती है।
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वे कितने भोलेभाले, कितने सीधे-साधे, कितने हल्के-फुल्के दिन हुआ करते थे...
- जयशंकर की कहानी 'लालसा' से (वागर्थ, सितम्बर 2016)