यहाँ सब कुछ ठहरा-ठहरा सा ही रहता है... किसी को किसी भी बात की जल्दी नहीं... कोई स्कूल की बस पकड़ने नहीं भागता. कोई घड़ी की सुइयों से होड़ लगाता हुआ नाश्ता नहीं निगलता. कोई भागदौड़ नहीं, कोई चिंता नहीं. चिंता... समय को मुट्ठी में बाँध रखने की चिंता... जिंदगी की दौड़ में औरों से पीछे छूट जाने की चिंता...
- एक कहानी (तीसरी धरती) से