नोबोकोव ने लेखन को विशुद्ध प्रतिभा की बदौलत कहा है. गोगोल की 'तस्वीर', स्टीफन स्वाइग की 'अदृश्य संग्रह' और 'शतरंज', प्रेमचंद की 'कफन', रेणु की 'मारे गए गुलफाम', दूधनाथ सिंह की 'धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे', प्रभु जोशी की 'पित्रऋण', संजीव की 'अपराध', रेमण्ड कार्वर की 'बुखार'तथा आइजैक सिंगर की 'पांडुलिपि' जैसी कहानियों को पढ़कर नोबोकोव की बात सच लगती है…
- ओमा शर्मा के लेख से ('कथादेश', जनवरी 2013)
ऐसा लगता है कि हिंदी का हर कहानीकार किसी न किसी रूप में चेखव की एक कहानी 'एक क्लर्क की मौत' को फिर से लिखना चाहता है. चेखव की यह छोटी कहानी अधिकारी और अधीनस्थ कर्मचारी के संबंध पर मार्मिक प्रकाश डालती है.
- 'दिनमान' (February 1, 1987) में प्रकाशित एक समीक्षा से
सफलता की मदांधता की कहानी - बउरैया कोदो (अमरकांत)
संपन्नता की मदांधता की कहानी - पिंटी का साबुन (संजय खाती)
पद / शक्ति की मदांधता की कहानी - टोपी (संजय सहाय)
'जलते हुए मकान में कुछ लोग' (राजकमल चौधरी) जैसी कहानी
- एक ब्लॉग (www.jankipul.com) से