Tuesday, January 22, 2013

प्रतिनिधि कहानियाँ (गीतांजलि श्री)

कसक

पर बचपन की उदारता दूसरी होती है। उसमें हर फर्क के बावजूद, हर 'कॉम्प्लेक्स' के बावजूद कुछ ऐसे धागे होते हैं कि यह कहूँ कि किसी को भी किसी से जोड़ सकते हैं, तो लेश-मात्र ही अतिशयोक्ति होगी। आपस की हर दूरी, अन्दर की सारी हीन भावनाओं से बढ़कर एक 'कल' जो होता है - दूर-दूर तक फैला, वह 'कल' जब हम बड़े हो जाएँगे। यह हम सब को जोड़ देता है। उस 'कल' में अपार शक्ति है।

Future as the binding force.

No comments:

Post a Comment