Tuesday, March 17, 2015

मेरी प्रिय कहानियाँ (अमरकान्त)

इंटरव्यू
प्रतीक्षा में ग्यारह बज गए। … अब भी इक्के-दुक्के उम्मीदवारों का आना जारी था। ऐसे आगन्तुकों का, अक्सर उनके दो-तीन साथी या परिचित, बिना आगे बढ़े ही, 'आ गए ?' कह कर व्यर्थ में मुस्करा कर, भद्दी हँसी हँस कर स्वागत करते। 
… कलक्टर से सम्बन्धित एक-एक अदना चीज़ से निकटतम सम्बन्ध बताने की होड़ लगी हुई थी। प्रत्येक एक-दूसरे से घृणा करता…
… उनमें व्यर्थ महत्त्व, बनावटी सभ्यता तथा तुच्छ शर्म के ऐसे भाव थे जैसे शादी के दिन मंडप की तरफ बढ़ते हुए दूल्हे के पीछे-पीछे धीरे-धीरे चलने वाले दूर के ऐरे-गैरे भाइयों के मुख पर दृष्टिगोचर होते हैं।  
उनकी नाम मात्र की इज़्ज़त थी। वे घर के बाहर निकम्मे, चापलूस और झूठे थे और घर में उनका काम बीवी-बच्चों को डांटना-डपटना और मारना था। 

क्लर्क की सरकारी नौकरी के इंटरव्यू के लिए कलक्टर के बंगले के बाहर इकठ्ठा हुए low self-esteem वाले लोगों का चरित्र-चित्रण।

बउरैया कोदो
"जब तुम्हारे नाम लाख रूपये की लॉटरी निकल जाएगी तो तुम भी नाचने गाने, दौड़ने और दुलत्तियाँ झाड़ने लगोगे… यही बउरैया कोदो है…"
"यार, हमारे एक आर्टिस्ट मित्र ने बउरैया कोदो खा लिया है, उसकी हाल में एक पेंटिंग पर जब से पुरस्कार मिला है, वह अपने को सबसे श्रेष्ठ समझने लगा है, वह हमेशा गुस्से में रहता है, जिसको चाहे अपमानित कर देता है, चिल्लाकर बोलता है…"

गले की ज़ंजीर

लोगों में दूसरों पर कुछ-भी सलाह ठोंक देने की प्रवृत्ति पर एक मजेदार कहानी।

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