Friday, May 15, 2020

जामा मस्जिद सिंड्रोम (प्रवीण कुमार झा)

जामा मस्जिद के पास जब इरविन अस्पताल में था, तब भी बुरके वाली स्त्रियाँ अस्पताल आकर मुक्त हो जाती थी। एक मनोरोग विशेषज्ञ ने इस पर पेपर ही छपवा दिया — जामा मस्जिद सिंड्रोम। बड़ी किरकिरी हुई। बच गया कि फ़तवे नहीं जारी हुए। लिखा कि घरों में बंद स्त्रियाँ अस्पताल आकर खुली हवा में साँस लेती है। कहती हैं— पेट में, हाथाँ में, पैराँ में, छाती में दर्द है। जाँच करो तो कुछ नहीं। एक दफ़े मैं फँस गया।
“अपर्णा! लुक्स लाइक जामा मस्जिद सिन्ड्रोम! तू देख ले”
“फिर तो तू ही देख। शी नीड्स अ मैन!”
“मज़ाक़ नहीं कर रहा। और भी पेशेंट्स है। वह समय जाया कर रही है बस।”
“मैं भी मज़ाक़ नहीं कर रही।”
-प्रवीण कुमार झा की कहानी ‘जामा मस्जिद सिंड्रोम’ से (at jankipul.com)

An interesting concept - Jama Masjid syndrome.

Sunday, May 10, 2020

दुश्मन मेमना (ओमा शर्मा)


'कल के अलावा पहले भी यह तीन बार कोशिश कर चुकी है।'

'तीन!'

हम दोनों विस्मय से काँप उठते हैं। एक संभावित त्रासदी से ज्यादा उसके जीवन से बेदखल और फिजू़ल होते अपने जीवन की त्रासदी से। दिन-रात उसकी खुशी के लिए खा़क होते हम जैसे कुछ नहीं... एक अनजान डॉक्टर ज्यादा भरोसेमंद हो गया।
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अपने यकीन के बेसहारा और तिलमिलाकर अपदस्थ होने के कारण...
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नौजवान लड़की-लड़के एक-एक विचार को तकनीकी में पिरोकर नए-नए उद्यम खड़ा कर दे रहे हैं...
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कैसे अनवर्त्य (इर्रिवरसिबल) ढंग से कुछ जिंदगियाँ हमेशा के लिए बदल जाती हैं! आसमान तोड़ आर्तनादों को भी सांख्यिकी कितनी अन्यमनस्कता से अनसुना रख छोड़ती है!
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बस सोचे जा रहा हूँ कि... बिल्ली को छौने की मुलायमियत कैसे लौटाई जा सकेगी?


- ओमा शर्मा की 'रमाकांत स्मृति कथा-सम्मान' से नवाजी गई कहानी 'दुश्मन मेमना' से



काश बच्चे कभी बड़े ही नहीं हुआ करते! (RKP)