Wednesday, December 19, 2012

कहानी की तलाश में (अलका सरावगी)

अपनी बात

दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य है - मानव का मन और यही साहित्य के सृजन और पठन के आनन्द का आधार भी है।


कहानी की तलाश में

...जिसे अच्छी तरह मालूम है कि कौन-कौन सी जानकारियाँ जिंदगी में भुनाई जा सकती है। उससे ज्यादा जाननेवालों को शायद वह कमजोर और मूर्ख समझ लेगा।


हर शै बदलती है

A story about relationships ending as people change.

...आजकल अतिरंजना के बिना कोई किसी बात के साधारण अर्थ तक पहुँच कहाँ पाता है ? अब तो हालत यह हो गई है कि अतिरंजना करने पर भी साधारण अर्थ नहीं निकलता, वह भी अब घिस गई है।


बीज

A story about the thoughts and feelings of a sick person.

कभी-कभी उसे लगता था कि वह कोई तमाशा है जिसे कुछ लोग मजबूरी से और कुछ दबी-दबी उत्सुकता से देखने आ जाते हैं।

...और कितनी वहमी हो गई हूँ मैं ! पहले अविनाश की मैं कितनी हँसी उड़ाती थी, जब वे उलटी चप्पलें सीधे करते हुए कहते - 'उल्टी चप्पल रखने से बीमारी आती है।' मैं कहती - 'तुम्हें तो सौ साल पहले पैदा होना चाहिए था। कहाँ से सीखी हैं ये सब बातें ?' अब तो बाहर के लोग आते हैं, तो मेरे मन में यह ख्याल आए बिना नहीं रहता कि कहीं किसी की चप्पल उल्टी न पड़ी  हो। क्या आदमी इतना कमजोर होता है कि वह जरा-सी मुसीबत में अपने सारे विश्वास छोड़ देता है ?


मिसेज डिसूजा के नाम

मुझे लगता है, मिसेज डिसूजा कि सब लोग नतीजे तो चाहते हैं, उन पर पीठ भी थपथपाते हैं, उन नतीजों तक पहुँचने के लिए जो यात्रा करनी होती है, उनमें काँटे बिछाने से नहीं चूकते।

...पता नहीं, लोग कैसे अपने बारे में इतना विश्वास रख पाते हैं कि वे जो बोल रहे हैं वह बिल्कुल सही है। मुझे तो हमेशा अपनी बात पर सन्देह रहता है कि क्या पता यह उतनी सच न हो जितनी कि मैं समझ रही हूँ।

...अभी तक हम लोग जीवन को सही ढंग से जीने का 'फार्मूला' नहीं पा सके हैं। जब तक हम उस नुस्खे को नहीं पा लेते, जिससे हम इस दुनिया को एक बेहतर दुनिया बना सकें तब तक हमें अपने प्रति एक सन्देह भाव रखना ही होगा। हमें यह मानकर चलना होगा कि हम गलत भी हो सकते हैं।

मेरी सहेली आभा अपनी माँ के लगभग सैनिक अनुशासन में पलकर बड़ी हुई - फोन की घंटी दो बार से अधिक नहीं बजनी चाहिए, हर बात को एक बार में समझ लेना चाहिए, किसी चीज को लाने के लिए जो दराज खोलना बताया गया हो, उसके अलावा कोई दराज नहीं खुलना चाहिए। आभा में मानसिक सतर्कता और कम ऊर्जा में अधिक काम करने की क्षमता तो जरुर विकसित हुई, पर उसके अन्दर जैसे सारे प्रश्न समाप्त हो गए... मैंने तो पाया है कि जीवन में आलस, फुरसत और निकम्मापन भी कुछ मात्रा में होना जरुरी है... ताकि आप रूककर देख सकें कि आप आखिर कहाँ जा रहे हैं।


ख़िजाब

अपने इर्द-गिर्द देखकर उसे कई बार महसूस होता था कि प्रेम सारी सहूलियतें और सुरक्षाएँ भले ही दे सकता है, पर स्वतन्त्रता छीन लेता है। सम्बन्धों की निकटता में सुरक्षा तो जरुर है, पर उतनी ही घुटन भी है।

(Comment: 'प्रेम' शब्द का प्रयोग यहाँ institutionalized relationships, e.g. marriage, के अर्थ में किया गया है।)


महँगी किताब

मनुष्य का क्या भरोसा है ? वह जिस दिशा में बह जाता है, उस दिशा में जाने के पीछे, अपनी इच्छा को साबित करने के लिए हजार -हजार युक्तियाँ खोज लेता है। मैंने खुद अपने मित्रों को बिलकुल पलट जाते देखा था।

Friday, July 13, 2012

परिंदे का इन्तज़ार-सा कुछ... (नीलाक्षी सिंह)

सब कुछ सुलझा हुआ और तरतीब से था हमारे बीच। किसी जिद, नानुकर, मान-मनौवल के लिए जगह नहीं छोडी थी हमने।

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ज़िन्दगी का ऐसा ही खूबसूरत जायका मेरे काबू में था की तभी ख़बर लपट की तरह...

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अचानक मेरी पलकों में कोई एक आंसू फँस गया...मैंने महसूस किया।


Comments: नीलाक्षी सिंह के लेखन में कला बेहद सधी हुई है। At her age, this is an accomplishment.

Sunday, July 8, 2012

तिरिया चरित्तर (शिवमूर्ति)

Read the Hindi long story Tiriya Charitra by Shivmurti. The story is set in rural India. I could not really relate to it.


Saturday, June 23, 2012

खरगोश (प्रियंवद)

Just read the Hindi short story खरगोश by Priyamvad. It's a story of a ten-year-old boy's sexual attraction for the female body. This story has been made into a film by the same title. Basically an experimental film. The DVD is available online at Flipcart.com.

Friday, June 8, 2012

पीली छतरी वाली लड़की (उदय प्रकाश)

अंजली इन दिनों हर ऐसे मौके की ताक में रहती, जिसमें वह राहुल को छू सके। और राहुल भी इसी फेर में रहता।

अंजली लड़कियों के साथ लंच आवर में क्लास रूम से बाहर निकल रही थी। राहुल ने चुपके से उसकी सबसे छोटी कानी उंगली दबा दी। लाइब्रेरी में एक बार उसकी चोटी खींची, दूसरी बार उसका कान खींचा, तीसरी बार उसकी गर्दन पर हल्के से उंगलियां धंसाई और चौथी बार उसकी हथेली को अपनी हथेली में कुछ सेकेंड्स के लिए भर लिया।

यह एक नयी भाषा थी, जिसे उन्होंने अपने-अपने जीवन में पहली बार जाना था। इस भाषा के वाक्य अलग थे, उनका सिंटैक्स भिन्न था। वे उसके अनोखे व्याकरण को धीरे-धीरे, हर रोज़ सीख रहे थे। यह सीखना इतने आश्चर्यों, सुखों, कौतुकों और सांस तक को रोक देने वाली बेचैनियों से भरा था की वे उन पलों में अवाक्, हतप्रभ और अवसन्न रह जाते। वह अनुभव उनकी चेतना और देह को अपने इंद्रजाल में बांध कर जड़ कर देता और उन्हें लगता इस समूचे ब्रह्माण्ड में वे दोनों बिलकुल अकेले हैं।

(pp. 84-85)

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अचानक राहुल को लगा, उसके जीवन में पहली बार उसे वह अनुभव, वह सुख मिला है, जो नितांत उसका अपना है। निजी, पर्सनल और गोपनीय। एक ऐसा खजाना, जिसे सबसे छुपाकर, अपनी स्मृतियों में किसी सुरक्षित कोने में संभालकर रखना है। हमेशा के लिए।
(p. 104)

Wednesday, March 7, 2012

बोधिवृक्ष (प्रियंवद)

... गली के ऊपर फड़फड़ाती चाँदनी... किसी पेड़ पर टंगा वसंत... नालियों में जमा पतझड़.

(Gulzar-esque writing)

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नैतिकता का... पुण्य का... संस्कारों का चाबुक...

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न वो लोग रहे, न वे बातें.

(a classic nostalgic statement)

 - प्रियंवद की कहानी 'बोधिवृक्ष' से

Monday, March 5, 2012

...और अंत में प्रार्थना (उदय प्रकाश)

लेकिन ईश्वर को डॉक्टर वाकणकर मानते हैं. वे कहते हैं कि ऐसे किसी अस्तित्व या मिथक का बने रहना जरुरी है. उनके अनुसार ईश्वर अशक्त मनुष्यों की असहायता और विकलता का आर्तनाद है. ईश्वर अफीम या मारफीन तो है, लेकिन इस अर्थ में कि वह मारे जानेवाले मनुष्य के दर्द और यंत्रणा को कम कष्टप्रद बनाता है. ईश्वर एस्पिरीन, एनेस्थेशिया या ट्रेंक्वेलाइजर की तरह है. एक भला और दयालु डॉक्टर भी अंत में किसी असाध्य रोग से मरते हुए मरीज को ईश्वर ही प्रदान करता है... ईश्वर मरीज की पीड़ा, यंत्रणा, चीख और मृत्यु को पारलौकिक परिभाषा देकर उसकी सहिष्णुता को बढ़ाता है.
(p.104)
("The fact that a believer is happier than a skeptic is no more to the point than the fact that a drunken man is happier than a sober one" – George Bernard Shaw)

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मैंने उसके [प्रधानमंत्री] चेहरे पर मृत्यु की परछाईं का हल्का धुंधलका देखा. मुझे यकीन है कि वह इसे जानता है... भविष्य में जीनेवालों के प्रति वह पूरी तरह से अनुत्तरदायी है.
(p.160)
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...शहर में बेरोजगारों की अच्छी-खासी तादाद थी... उनके चेहरे एक जैसे उदास, सख्त और अपरिचित थे. तिरस्कार, निर्वाचन और सामाजिक अनुपयोगिता ने उन्हें एक हिंसक अहंकार से भर दिया था. बहुत मामूली-सी बात पर वे मारपीट कर सकते थे, हत्या कर सकते थे और ऐसा करते हुए उन्हें यह संतोष हो सकता था कि उनका अस्तित्व अभी भी संसार में है और वे कुछ कर सकते हैं. हिंसा, फसाद, झगड़ा और बलात्कार उनके लिए अपने सामाजिक विस्थापन और मानसिक लाचारी से किसी तरह मुक्त होने का एक छटपटाता हुआ प्रतिरोध था, जिसे समाज अपराध मानता था.
(p.163)

- उदय प्रकाश क़ी कहानी '...और अंत में प्रार्थना' से
Lots of sociological insights. Psychological function of religion. Marginalization leads to Radicalization.

Saturday, February 25, 2012

Jab We Met

तुम तो बिलकुल मेरे जैसे हो गए हो.
- Kareena Kapoor in the film Jab We Met


The Sense of an Ending - Julian Barnes (2011)

Is there anything more plausible than a second hand? And yet it takes only the smallest pleasure or pain to teach us time's malleability. Some emotions speed it up, others slow it down; occasionally it seems to go missing - until the eventual point when it really does go missing, never to return.
(p.3)

It's just a phase, they would insist. You'll grow out of it; life will teach you reality and realism.
(p.11)

And writing to one another seemed to have recalibrated the dynamics of our relationship. The original three wrote less often and less enthusiastically to one another than we did to Adrian.
(p.19)

... most people didn't experience 'the Sixties' until the Seventies.
(p.40)

'They grow up so quickly, don't they?' when all you really mean is: time goes faster for me nowadays.
(p.55)

But then you begin to understand that the reward of merit is not life's business.
(p.59)

Discovering, for example, that as witnesses to your life diminish, there is less corroboration, and therefore less certainty, as to what you are or have been. 
(p.59)

The less time there remains in your life, the less you want to waste it.
(p.68)

... something of Margaret had rubbed off on me over the years.
(p.75)

'the littleness of life that art exaggerates'
(p.93)

... the chief characteristic of remorse is that nothing can be done about it: that the time has passed for apology or amends.
(p.107)

once bitten, twice bitten...
(p.119)


The key point of the novel is that our memories are incomplete and imperfect, because of forgetting and the current state of mind.

Other people, documents (letters, diaries) act as corroborators of memories.
- RKP

Monday, February 13, 2012

Three Idiots

दोस्त अगर फेल हो जाए, तो दुख होता है, पर अगर दोस्त फर्स्ट आ जाए, तो ज्यादा दुख होता है.
- Three Idiots से

Sunday, February 12, 2012

स्मृतियों की जकड़

फिर धीरे-धीरे वह अपनी स्मृतियों की जकड़ से छूटता हुआ एकाकीपन के पहाड़ से उतरता है.
- एक  समीक्षा  से

Thursday, February 2, 2012

The Last Leaf

... she feared she would, indeed, light and fragile as a leaf herself, float away, when her slight hold upon the world grew weaker.

"She is very ill and weak," said Sue, "and the fever has left her mind morbid and full of strange fancies..."

- From O. Henry's short story The Last Leaf

Wednesday, January 25, 2012

घोड़ा एक पैर (दीपक शर्मा)

उसकी जूझ, उसकी झोंक, उसकी पसंद बराबर समझने वाला. उसके मिज़ाज, उसके उतावलेपन, उसके उन्माद को ढोने वाला. अपनी टेक में उसे थाम रखने में पूरी तरह से समर्थ.
- दीपक शर्मा की कहानी 'घोड़ा एक पैर' से 

Sunday, January 8, 2012

लव स्टोरी वाया फ्लैश-बैक

अपने आपको खारिज कर दिये जाने का दर्द...

उसके मन के किसी कोने से प्रार्थना जैसी आवाज आ रही थी कि यह सब झूठ हो.

- 'लव स्टोरी वाया फ्लैश-बैक' कहानी से (लेखक - अनुराग शुक्ला)