अपनी बातदुनिया का सबसे बड़ा रहस्य है - मानव का मन और यही साहित्य के सृजन और पठन के आनन्द का आधार भी है।
कहानी की तलाश में
...जिसे अच्छी तरह मालूम है कि कौन-कौन सी जानकारियाँ जिंदगी में भुनाई जा सकती है। उससे ज्यादा जाननेवालों को शायद वह कमजोर और मूर्ख समझ लेगा।
हर शै बदलती है
A story about relationships ending as people change.
...आजकल अतिरंजना के बिना कोई किसी बात के साधारण अर्थ तक पहुँच कहाँ पाता है ? अब तो हालत यह हो गई है कि अतिरंजना करने पर भी साधारण अर्थ नहीं निकलता, वह भी अब घिस गई है।
बीज
A story about the thoughts and feelings of a sick person.
कभी-कभी उसे लगता था कि वह कोई तमाशा है जिसे कुछ लोग मजबूरी से और कुछ दबी-दबी उत्सुकता से देखने आ जाते हैं।
...और कितनी वहमी हो गई हूँ मैं ! पहले अविनाश की मैं कितनी हँसी उड़ाती थी, जब वे उलटी चप्पलें सीधे करते हुए कहते - 'उल्टी चप्पल रखने से बीमारी आती है।' मैं कहती - 'तुम्हें तो सौ साल पहले पैदा होना चाहिए था। कहाँ से सीखी हैं ये सब बातें ?' अब तो बाहर के लोग आते हैं, तो मेरे मन में यह ख्याल आए बिना नहीं रहता कि कहीं किसी की चप्पल उल्टी न पड़ी हो। क्या आदमी इतना कमजोर होता है कि वह जरा-सी मुसीबत में अपने सारे विश्वास छोड़ देता है ?
मिसेज डिसूजा के नाम
मुझे लगता है, मिसेज डिसूजा कि सब लोग नतीजे तो चाहते हैं, उन पर पीठ भी थपथपाते हैं, उन नतीजों तक पहुँचने के लिए जो यात्रा करनी होती है, उनमें काँटे बिछाने से नहीं चूकते।
...पता नहीं, लोग कैसे अपने बारे में इतना विश्वास रख पाते हैं कि वे जो बोल रहे हैं वह बिल्कुल सही है। मुझे तो हमेशा अपनी बात पर सन्देह रहता है कि क्या पता यह उतनी सच न हो जितनी कि मैं समझ रही हूँ।
...अभी तक हम लोग जीवन को सही ढंग से जीने का 'फार्मूला' नहीं पा सके हैं। जब तक हम उस नुस्खे को नहीं पा लेते, जिससे हम इस दुनिया को एक बेहतर दुनिया बना सकें तब तक हमें अपने प्रति एक सन्देह भाव रखना ही होगा। हमें यह मानकर चलना होगा कि हम गलत भी हो सकते हैं।
मेरी सहेली आभा अपनी माँ के लगभग सैनिक अनुशासन में पलकर बड़ी हुई - फोन की घंटी दो बार से अधिक नहीं बजनी चाहिए, हर बात को एक बार में समझ लेना चाहिए, किसी चीज को लाने के लिए जो दराज खोलना बताया गया हो, उसके अलावा कोई दराज नहीं खुलना चाहिए। आभा में मानसिक सतर्कता और कम ऊर्जा में अधिक काम करने की क्षमता तो जरुर विकसित हुई, पर उसके अन्दर जैसे सारे प्रश्न समाप्त हो गए... मैंने तो पाया है कि जीवन में आलस, फुरसत और निकम्मापन भी कुछ मात्रा में होना जरुरी है... ताकि आप रूककर देख सकें कि आप आखिर कहाँ जा रहे हैं।
ख़िजाब
अपने इर्द-गिर्द देखकर उसे कई बार महसूस होता था कि प्रेम सारी सहूलियतें और सुरक्षाएँ भले ही दे सकता है, पर स्वतन्त्रता छीन लेता है। सम्बन्धों की निकटता में सुरक्षा तो जरुर है, पर उतनी ही घुटन भी है।
(Comment: 'प्रेम' शब्द का प्रयोग यहाँ institutionalized relationships, e.g. marriage, के अर्थ में किया गया है।)
महँगी किताब
मनुष्य का क्या भरोसा है ? वह जिस दिशा में बह जाता है, उस दिशा में जाने के पीछे, अपनी इच्छा को साबित करने के लिए हजार -हजार युक्तियाँ खोज लेता है। मैंने खुद अपने मित्रों को बिलकुल पलट जाते देखा था।







