Monday, March 31, 2014

गन्ध की रस्सी और यादों का कुआँ

फिर एक सन्न-सन्न करता सन्नाटा वहाँ फैल जाता था.


अपनेपन की गन्ध बिखेरता घर था.


वह गन्ध की रस्सी पकड़कर यादों के गहरे कुएँ में उतर गया था.


प्यार की बौछार...

- जीवन सिंह ठाकुर की कहानी 'वापसी' से ('कथादेश', जनवरी 2006)

विपन्नताओं की समृद्धियाँ...समृद्धियों की विपन्नताएँ

वहाँ विपन्नताओं की समृद्धियाँ हैं और यहाँ समृद्धियों की विपन्नताएँ.

- रश्मि कुमारी की कहानी 'अनावरण' से ('कथादेश', मई 2005)

Sunday, March 23, 2014

इलाहाबाद के पथ पर... (वन्दना राग)

उन शहर के लोगों से बात कर देखिए, जिनके शहरों में अभी तक मॉल (शॉपिंग सेंटर) नहीं आया है। कितना पिछड़ा हुआ महसूस करते हैं वे अपने आपको। ...वह एक महत्त्वपूर्ण बिम्ब है जो छोटे को बड़े शहर से अलग करता है।
- वन्दना राग (एक संस्मरण 'इलाहाबाद के पथ पर...' से , 'नया ज्ञानोदय', फरवरी 14)

संस्मरण की भाषा प्रांजल है ।

Monday, March 10, 2014

वक़्त के सितम कम हसीं नहीं

वक़्त ने किया, क्या हसीं सितम
तुम रहे न तुम, हम रहे न हम

तुम भी खो गए, हम भी खो गए
एक राह पर, चल के दो कदम
- कैफी आजमी ('कागज़ के फूल' फिल्म के गीत से)


एक बार वक़्त से, लम्हा गिरा कहीं
वहाँ दास्ताँ मिली, लम्हा कहीं नहीं
- गुलज़ार ('गोलमाल' फिल्म के गीत से)


नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा
मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे
वक़्त के सितम कम हसीं नहीं, आज हैं यहाँ कल कहीं नहीं
गुलज़ार ('किनारा' फिल्म के गीत से) 

दिवास्वप्न

तूने जो न कहा, मैं वह सुनता रहा
खामख्वाह बेवजह ख्वाब बुनता रहा

- एक नई फिल्म के गीत से
दिल की बात न पूछो, दिल तो आता रहेगा
दिल बहकाता रहा है, दिल बहकाता रहेगा
- गुलजार (फ़िल्म 'लिबास' के गीत से)

Sunday, March 2, 2014

अगस्त और अतीत (जयशंकर)

यह उन्नीस सौ  सत्तर के आसपास का दौर था. हम गेहूँ के लिए अमेरिका के भरोसे रहा करते थे. अच्छी घड़ियाँ स्मगलिंग से बाजार में आती थी. स्कूटर खरीदने के लिए और घर में टेलिफोन लगवाने के लिए नम्बर लगवाना पड़ता था. वह इस देश का कोई दूसरा ही वक्त रहा था.
- जयशंकर की कहानी 'अगस्त और अतीत' से ('कथादेश', जनवरी 2013)

आज का दौर भी क्या कुछ दशकों के बाद इसी तरह अजीब-सा, 'कोई दूसरा ही वक्त' लगेगा?