फिर एक सन्न-सन्न करता सन्नाटा वहाँ फैल जाता था.
अपनेपन की गन्ध बिखेरता घर था.
वह गन्ध की रस्सी पकड़कर यादों के गहरे कुएँ में उतर गया था.
प्यार की बौछार...
अपनेपन की गन्ध बिखेरता घर था.
वह गन्ध की रस्सी पकड़कर यादों के गहरे कुएँ में उतर गया था.
प्यार की बौछार...
- जीवन सिंह ठाकुर की कहानी 'वापसी' से ('कथादेश', जनवरी 2006)