Thursday, February 27, 2014

एक बंगला सबसे न्यारा (जितेन ठाकुर)

उफ़! कितने वर्ष! कितने वर्ष एक... तिलिस्म में क़ैद रहा हूँ मैं.
- जितेन ठाकुर की कहानी 'एक बंगला सबसे न्यारा' से ('हंस', अक्टूबर 2001) 

एक मृग-मरीचिका के पीछे जिंदगी खरच देने के अहसास की पीड़ा. कई बार ऐसा भी होता है कि मृग-मरीचिका के मृग-मरीचिका होने के चिन्ह उस व्यक्ति को स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं, पर वह उन चिन्हों को नज़रअंदाज़ करने और मृग-मरीचिका के जादू में बने रहने का लोभ संवरण नहीं कर पाता. या उसे तल्ख़ सच्चाई से सामना कराने वाला कोई नहीं मिलता.

One-Way Street

दोनों रफ्ता-रफ्ता उस रास्ते पर चल रहे थे, जिसके मुसाफ़िर लौटकर कम ही आते हैं.
- एक संस्मरण से (ले. ज्ञान प्रकाश विवेक, 'पाखी', मई 2012)

There are a few one-way streets - alcoholism, drugs, crime etc.

Wednesday, February 26, 2014

पान से प्रतिष्ठा

पान प्रकृति है, परम्परा है, प्रेम है। अनेक के लिए पान प्रतिष्ठा है। दुकान पर जाने के बाद जिसका पान बिना ऑर्डर दिए बन जाए, उसका सिर चार मित्रों के बीच ऊँचा हो जाता है। किसी को भेजकर पान मंगाना हो तो 'कहना बल्लू भैया का पान बना दो' कहते हुए बल्लू भैया को जिस खुशी और गर्व का अहसास होता है उसके आगे...
- पान पर एक ललित निबंध से ('वागर्थ ', मार्च 2006)

Tuesday, February 25, 2014

दूसरी, तीसरी... सातवीं औरत का घर! (नीला प्रसाद)

"तुम अतीत से बने हो पर तुम अतीत नहीं हो. तुम वर्त्तमान हो तो वर्त्तमान में जीना, उसकी इज्जत करना सीखो."
- नीला प्रसाद की कहानी 'दूसरी, तीसरी... सातवीं औरत का घर!' से ('कथादेश', जनवरी 2006)

अतीतजीवी 

Monday, February 24, 2014

आश्रम (राबिन शॉ पुष्प)


"तुम सिगरेट नहीं पीते हो, इसीलिए मुझे अच्छे लगते हो," फिर वह तेजी से पलटकर चली गयी थी.

मेरे हाथ में रह गयी थी प्याली और न छूकर भी छूने जैसा एक अहसास. उस  दिन, जीवन में पहली बार मैंने अनुभव किया था कि शब्दों के द्वारा भी बहुत भीतर तक स्पर्श किया जा सकता है.

तभी वह आ जाती है. मैं जल्दी से सिगरेट नीचे गिराकर, जूते से मसलने लगता  हूँ. यह देखकर वह भीतर जाती है, लौटकर मेरे सामने ऐश-ट्रे रख देती है, "जब से वे गुजरे हैं, इसमें किसी ने राख नहीं झाड़ी. तुम इत्मीनान से पीओ."

वह सामने बैठ जाती है.

"तुम्हें बुरा नहीं लगेगा?"

"क्यों? मैं भी पीती रही हूँ."

एक झटका लगता है मुझे.

- राबिन शॉ पुष्प की कहानी  'आश्रम' से ('कथादेश', जनवरी 2006)  


अंदर तक सिहर उठा मैं. सहसा मुझे लगा, एक पल में वह कितनी अपरिचित हो उठी  है.
- उसी कहानी से


कभी कभी हमारा कोई अंतरंग अपनी एक बात से अचानक कितना अजनबी-सा लगने लगता है.

Friday, February 21, 2014

शॉर्ट फ़िल्म (प्रभात रंजन)

चिट्ठियों में हमने यह जान लिया था कि हम दोनों अलग-अलग दुनियाओं में रह रहे थे। जिन्हे एक करने की कोई सूरत नहीं बची थी। समय के साथ वह दूरी और बढ़ती जा रही थी। वह अमेरिका के बारे में, वहाँ कि यूनिवर्सिटी सिस्टम के बारे में लिखती थी। मुझे दिल्ली के बारे में लिखते हुए शर्म आती थी। मुझे ऐसा लगने लगता जैसे वह मुझे गाँव में छोड़कर शहर चली गई हो।
प्रभात रंजन की कहानी 'शॉर्ट फ़िल्म' से  (आउटलुक , जनवरी  2014

Tuesday, February 18, 2014

अन्वेषण (मधु कांकरिया)

सोच रहे हैं मैथ्यू. दृष्टि घूम जाती है पीछे की ओर. यादों के पक्षी उड़ रहे हैं, चारों ओर. कुछेक पकड़ में आते हैं कुछ हाथ आते-आते छूट जाते हैं.
- मधु कांकरिया की  कहानी  'अन्वेषण ' से 

अच्छी imagery है.


…कोई भी सत्य सार्वकालिक नहीं होता, जो कल मेरे लिए सत्य था, वह आज नहीं है.
- उसी कहानी से