Saturday, April 12, 2014

द्रुत-विलम्बित (हृषिकेश सुलभ)

सेमल के पके फल-सी फटती हैं बीते हुए समय की गाँठें और बातें, घटनाएँ, आहत क्षण, ठिठकी हुई चाहतें - सब रुई लिपटे बीज की मानिन्द शुभा के इर्द-गिर्द उड़ने लगती हैं.

हृषिकेश सुलभ की कहानी 'द्रुत-विलम्बित' से ('कथादेश', जून 2012)

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