Wednesday, April 16, 2014

नये मौसमों की धूप में (जया जादवानी)

तुम जब मेरी तरफ़ देखकर मुस्कराते और तुम्हारे नन्हें लाल होठों पर दूध की बूँदें चमकतीं, उस क्षण मैं इस समूची सृष्टि की कर्ज़दार हो उठती जिसकी किसी साजिश के परिणामस्वरूप तुम इस वक़्त मेरी गोद में हो।

…न जाने कितनी ख़्वाहिशें अपने कवच तोड़ फूट पड़ेंगी।

- जया जादवानी की कहानी 'नये मौसमों की धूप में' से ('नया ज्ञानोदय', फरवरी 2011) 

कहानी के कथ्य में कोई नयापन नहीं - एक माँ के अपने पुत्र पर ज़ीवन खपा देने के बाद अंततः अकेले रह जाने की देखी-जानी-पढ़ी हुई गाथा। पर कहानी का शिल्प असाधारण है। लेखिका के पास एक पैनी दृष्टि और प्रवाहपूर्ण भाषा है।

No comments:

Post a Comment