लगा, वह एक बड़े से काफिले के साथ था, जिसमेँ सारे जाने-पहचाने चेहरे कहीं गायब हो गए और अनजाने आकर मिल गए। जब वह चला था तो आगे बहुत से लोग थे जो देखते-ही-देखते खो गए और बहुत सारे अनजाने पीछे से आकर मिल गए। काफिला न तो लंबा हुआ न छोटा, बस वह खुद ही आगे बढ़ गया।
- मंजूर एहतेशाम की 'संपूर्ण कहानियां' की एक समीक्षा में उनकी एक कहानी से उद्धृत पंक्तियाँ
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