सूनी, काली, पानीदार, बड़ी-बड़ी आँखें टग-टग आसमान को ताक रही हैं। उनमें कोई ऊष्मा, कोई जीवन, कोई हरकत नहीं है। एक त्रासद याचना है सिर्फ। "मुगती दिराओ !" बस... बहुत हो चुका... अब मुक्ति दो।
यह अन्याय से उसका पहला परिचय था। और विवशता से भी।
भायं... भायं ! चौफेर सरणाट सुनसान ! हरियाली क कहीं छिटका तक नहीँ। …मिनख भूखे-तिरसे फिर रहे हैं…
चारूंमेर लोग बीमार पड़ रहे थे और मर रहे थे।
जमीन ऐसी थी कि दो बरसात ठीक टैम पर हो जातीं तो खूब सारा नाज हो जाता था जिसे वे बरस-दो बरस-तीन बरस तक भी कंजूसी के साथ बरतते रह सकते थे।
कौन बेचेगा इनके हाथों अपना लाड़-कोड़ से पाला जानवर !
यह अन्याय से उसका पहला परिचय था। और विवशता से भी।
भायं... भायं ! चौफेर सरणाट सुनसान ! हरियाली क कहीं छिटका तक नहीँ। …मिनख भूखे-तिरसे फिर रहे हैं…
चारूंमेर लोग बीमार पड़ रहे थे और मर रहे थे।
जमीन ऐसी थी कि दो बरसात ठीक टैम पर हो जातीं तो खूब सारा नाज हो जाता था जिसे वे बरस-दो बरस-तीन बरस तक भी कंजूसी के साथ बरतते रह सकते थे।
कौन बेचेगा इनके हाथों अपना लाड़-कोड़ से पाला जानवर !
- स्वयं प्रकाश की कहानी 'नैनसी का धूड़ा' से
कहानी मार्मिक और भाषा प्रांजल है। राजस्थानी शब्दों का सुंदर समावेश है।
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